Friday, March 27, 2015



 मधुशाला

भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला,
कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला,
कभी न कण-भर खाली होगा लाख पिएँ, दो लाख पिएँ!
पाठकगण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला।।४।
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भावुकतेच्या द्राक्षलतेतुन काढि कल्पनेची हाला
कवीच साकी होउन आला घेउन कवितेचा प्याला
कधी न होइल प्याला खाली लाख लाख जण जरि प्याले
रसिक पिणारे अट्टल सारे पुस्तक माझी मधुशाला...1
सुवर्णसुत,13. 3. 2015